भोपाल: नर्मदा और किसानी बचाओ जंग के समापन के अवसर पर आयोजित जन अदालत जस्टिस गोपाला गौड़ा और जस्टिस अभय थिप्से ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि हम नर्मदा बचाओ आन्दोलन के जीवन और जीविका के लिए चल रहे 3 दशकों से भी अधिक लम्बे संघर्ष को सलाम करते हैं और इस लड़ाई को आगे बढ़ाने की भी कामना करते हैं क्योंकि ऐसा संघर्ष ही हमारे लोकतंत्र और देश को बचा सकता है । अपने आदेश में उन्होंने कहा कि सरकार और सभी एजेंसीज ने लोगों को इतने सालों से जो पीड़ा दी है, उनके अधिकारों का हनन किया है, वह गंभीर अपराध हैं जिसके लिए इन्हें जिम्मेदार ठहराना जरुरी है । लोगों को उनके अधिकार न दे, पुनर्वास व विस्थापन न करने के साथ - साथ सरकार ने नर्मदा नदी को मारकर उससे भी बड़ा गुनाह किया है । जीवनदायिनी नर्मदा को जीव –जंतु घातक बनाने जैसे कार्य करके इन्होने हमारे लोकतन्त्र को शर्मिंदा कर दिया । जस्टिस गौड़ा ने आगे कहा कि NWDTA, शिकायत निवारण प्राधिकरण, सुप्रीम कोर्ट के 2000, 2005 तथा 2017 के फैसलों पर भी अमल ना करना पूरी तरह से जीने के अधिकार और आजीविका के अधिकार पर चोट है । नर्मदा बचाओ आन्दोलन की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि हमें व्यवस्था के अन्दर रहकर ही अपनी मर्यादाओं में काम करना पड़ता है परन्तु समाज के लिए जो काम आप कर रहे उसको तुलना नहीं की जा सकती ।               खलघाट से 29 मई को शुरू हुयी नर्मदा और किसानी बचाओ जंग यात्रा आज 4 जून को बैरागढ़ से लगभग 13 किमी. पैदल चलकर नारों और गानों के साथ भोपाल के नीलम पार्क पहुंची। नीलम पार्क में जस्टिस गोपाला गौड़ा और अभय थिप्से की जन अदालत में यात्रा का स्वागत किया गया। जन अदालत की कार्यवाही धारा 24/2, पश्चिम बंगाल के सिंगूर, जीवन के अधिकार को आजीविका के अधिकार से जोड़ना, हीराकुंड बांध, वेस्ट बेकरी केस, क्रिमिनल केसेस तथा दलित तथा आदिवासियों के कई केसों में ऐतिहासिक आदेश पास करने वाले न्यायधीशों की उपस्थिति में नवीन मिश्रा के गीत “टूटी माला जैसी बिखरी किस्मत आज किसान की” के साथ शुरू की गयी।   नर्मदा नदी पर बने और प्रस्तावित सभी बांध के क्षेत्रों से आये हुए प्रभावित लोगों ने न्यायाधीशों को अपनी पीड़ा सुनाकर और आवेदन देकर न्याय की गुहार लगायी । सरदार सरोवर प्रभावित कैलाश अवास्या और गैम्तिया भाई ने बताया की कैसे जमीन के बदले जमीन की नीति होते हुए भी उसका पालन नहीं हो रहा है, अलीराजपुर में सिर्फ 8 परिवारों को जमीन दी गयी । आदिवासी समुदाय से आये गैम्तिया भाई ने बताया कि शिकायत निवारण प्राधिकरण के सामने हजारों आवेदन लंबित हैं और जिनमें मंजूरी मिली भी है तो उसका पालन नहीं हुआ है । रनजीत तोमर ने कहा कि नर्मदा ट्रिब्यूनल अवार्ड में पुनर्वास और पर्यावरण दोनों के बारे में लिखा है बावजूद इसके सरकार इसको लागो नहीं कर ही है और सुप्रीम कोर्ट में भी झूठे हलफनामे लगाकर जनता को गुमराह करने की कोशिश बहुत पहले से की जा रही है । श्यामा मछुवारा और मधु भाई ने न्यायाधीशों के सामने गुहार लगायी कि मछुवारा समुदाय के साथ न्याय किया जाए और हमें भी जमीन का लाभ दिया जाये । उन्होंने खा कि मान नर्मदा जैसी पहले थी हमें वैसी ही नर्मदा वापद लौटा दी जाए । कमला यादव ने श्यामा मछुवारा की बात को आगे बढ़ाते हुए खा कि मछली ही नहीं अब नर्मदा के सारे जीव जंतु मर रहे हैं, साफ़ सुथरा रहने वाला नर्मदा का पानी अब गन्दगी से भरा हुआ है ।   उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सवाल करते हुए कहा कि यदि आप सचमुच सबके मामा हैं तो इन बहनों को इस चिलचिलाती धुप में पैदल चलने को क्यों मजबूर कर रहे हैं ? निसरपुर गाँव से आये सुरेश प्रधान ने किसानों का दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि हमें सरकार ने भून्म्मिहीन और आजीविका विहीन कर दिया है । 88 पुनर्वास स्थलों में से केवल 3-4 स्थल ही केवल रहने लायक हैं । चिखल्दा से आये वाहिद मंसूरी ने बैकवाटर की समस्या बताते हुए कहा कि बैक वाटर में आने वाले परिवारों की पात्रता की बात नही की गयी है बल्कि 307 और 365 जैसी धाराएँ लगाकर आन्दोलनकारियों को दबाया जा रहा है । महाराष्ट्र से आये सरदार सरोवर प्रभावितों ने सतपुड़ा रेंज में बसे आदिवासियों की स्थिति और उनकी ख़त्म हो रही संकृति का उदाहरण देते हुए कहा कि 33 गांवों में 4326 परिवार हैं जिनमें से 1200 से अधिक परिवारों का भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी होना तथा हजारों परिवारों को वन अधिकार मिलना बाकी, जो परिवार अल्प  रूप से प्रभावित हैं उनके मुआवजे की भी बात कहीं नही है । गुजरात के प्रभावितों की स्थति बताते हुए देवराम कनेरा, दोकडिया और दिनेश ने खा कि प्रधानमंत्री जी देश- विदेश में गुजरात मॉडल का उदाहरण देने से नहीं थकते लेकिन सच्चाई यह है कि हमें 10 किमी दूर तक भी पानी नसीब नहीं होता । खराब जमीन को बदलकर अच्छी जमीन नहीं दी जा रही, सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं हो रहा और शमशान घात तक नही बनाये गए हैं । उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद भी सरकार इसका पालन नहीं करती । गुजरात के भरूच से आये हीराल भाई तथा चिमन भाई ने नर्मदा नदी में 60 किमी तक समुद्र के घुसने की बात कही जिस वजह से नर्मदा का पानी भी खरा हो गया है जो ना तो अब पीने लायक ही बचा है आर न मछलियों के जीवित रहने योग्य । उन्होंने अदालत से मांग की कि सरदार सरोवर से पानी छोड़ने का फैसला दिया जाए नहीं तो मछुवारा समाज मरने की स्थिति में आ जायेगा । जोबट बांध प्रभावितों की तरफ से कैलाश और खेमाँ भाई ने कहा कि 14 गाँव जोबत बाँध की डूब में हैं, सरकार द्वारा जमीन के बदले जमीन और 60/90 के घर प्लाट देने के आश्वासन दिये परन्तु छलावे में सिर्फ 20 हजार रुपये मिले वह भी कुछ ही परिवारों को । जोबत बांध क्षेत्र में भी मछुवारों की समिति बनायीं गयी है परन्तु मछुवारों को ही मछली मारने का अधिकार नही दिया जा रहा है । 2013 के कानून के अधर पर भूअर्जन हुयी जमीन के मालिक फिर से किसान हो गए हैं, वह जमीन वापस लौटाई जनि चाहिए परन्तु ऐसा नहीं हो रहा है । बरगी बांध विस्थापितों ने अदालत में खा कि हमें हमारी पात्रता के अनुसार लाभ दिये जाए , यदि यह संभव नहीं है तो बांध को छोड़ दिया जाये । सिंचाई तो दूर की बात नहरों का निर्माण तक नहीं हुआ है परन्तु भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों ने पहले ही यह राशि ले ली है । सिर्फ हमारे क्षेत्र में ही 14 विद्युत् परियोजनाएं प्रस्तावित हैं, हमारा सवाल है –यदि नदी का सारा पानी इन परियोजनाओं को ही जाएगा तो किसानों के लिए क्या बचेगा? छिन्द्वाड़ा से आये माछागोरा बांध विस्थापितों ने भी अपनी समस्याएं और सरकारी हेर फेर और अन्याय की बातें अदालत के सामने रखी । इंदिरा सागर बांध क्षेत्र से आये मंगल सिंह मांझी ने मछुवारा समिति में मछुवारा समुदाय के लोगों को शामिल करने की बात उठाई । अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय समन्वयक वी पी सिंह ने न्यायाधीशों से किसानों  की मांगों पर संसद में पेश किये जाने वाले दो बिलों- पूर्ण कर्जमुक्ति और लागत का डेढ़ गुना दाम के बारे में बताया । उन्होंने कहा कि हम कर्जा मुक्ति की मांग कर हे हैं कर्जा माफ़ी की नहीं। डेढ़ गुना लागत की मांग प्रधानमंत्री मोदी ने ही अपनी सैकड़ों मीटिंग्स में की थी और अब चार साल होने पर भी मौन हैं । रभगवन सिंह परमार ने MSP सत्याग्रह के दौरान मंडियों में फसलों के दामों में बहुत अंतर की बात बताई उन्हों कहा कि सभी 100 मंडियों में दाम बिलकुल अलग थे । मंदसौर से आये वी  पी धाकड़ ने किसानों पर हो रहे दमन के बारे में बताया कि मंदसौर में किसानों पर 7000 मुकदमे दर्ज हैं । सेंचुरी मिल वर्कर्स के सत्यों ने भी सरकार और उद्योगपतियों की मिलीभगत का खुलासा करते हुए बताया कि दो मजदूरों की आत्महत्या करने और न्यायलय के फैसले के बावजूद भी न्याय नहीं मिल रहा है । अंत में मेधा पाटकर ने किसानों को हो रहे घाटे का जिक्र करते हुए बताया कि किसानों को उनको लागत का आधा मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है इसलिए हमने ज्यादातर फसलों पर सर्वे/अध्ययन करके शि मूल्य की मांग की है । जन अदालत की समाप्ति पर न्यायाधीशों ने  लोगों के आवेदन लिए और घोषणा की कि हम इस अदालत में हुयी प्रस्तुतियों के आधार पर जल्दी ही रिपोर्ट बनायेंगे और सभी सरकारी विभागों के साथ उसे साझा करेनेंगे ताकि लोगों को उनके  हहक मिल सकें । रणवीर तोमर, मंजू बहन, देवी सिंग तोमर, श्याम भदाने, पवन यादव, कमला यादव, देवराम कनेरा, पुण्या वासवे, लतिका, मेधा पाटकर सम्पर्क : 9867348307 | 9755544097 | 9424385139

Source : अमिताभ पांडेय